गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।
कबीरदास द्वारा लिखी गई उक्त पंक्तियाँ जीवन में गुरु के महत्व को वर्णित करने के लिए काफी हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरु व शिक्षक परंपरा चली आ रही है। गुरुओं की महिमा का वृत्तांत ग्रंथों में भी मिलता है। शिक्षक दिवस भारत में सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जन्मदिवस के रूप में 5 सितम्बर को मनाया जाता है |आज मन किया क्यों ना शिक्षक दिवस पर अपने कुछ ऐसे गुरुओं के बारे बताया जाए जो हमेशा से मेरे पथप्रदर्शक रहे |
दूसरे गुरु हमारे अध्यापक हैं जिनकी छत्रछाया में हम जिंदगी के इम्तिहान पास करते हुए अनवरत बढते रहे | उन्हीं में से कुछेक को बार बार याद तो किया पर आज कलम उठाली उनके बारे में कुछ बताने की जो जिंदगी भर के लिए मेरे प्रेरणा स्त्रोत बने|
क्योंकि तब नर्सरी कक्षा नहीं हुआ करती थी जिंदगी की पहली विधिपूर्वक पढाई के लिए मेरा पहली कक्षा में प्रवेश करवाया गया कादिया जिला गुरदासपुर पंजाब में | तब की जो हमारी पहली कक्षा की अध्यापिका थीं श्रीमती मंगली देवी लाजवाब थीं इतने प्यार से सब सिखा दिया ,उनकी दी गई शिक्षा ताउम्र याद रहेगी |
एक और महान शक्सियत को याद कर रही हूँ जो उस समय ट्यूशन लेते थे उन्होंने बिलकुल एक कुम्हार की तरह अन्दर से हाथ रखकर और बाहर से ठोक कर हम कच्चे घड़े रूपी शिष्यों का जीवन संवार दिया ,जबकि उनसे पढने का सुअवसर मुझे तो बहुत कम मिला परन्तु अपने शिष्यों को संवारने की लगन उनमें कूट कूट कर भरी हुई थी |
मेरी मुख्याध्यापिका श्रीमती संयोगिता भाटिया ,मेरी अध्यापिकायें श्रीमती प्रोमिला देवी,श्रीमती अंजू मल्हन, कुमारी सोनिया जी जिन्होंने इस जीवन को संवारने में कोई कसर नहीं छोड़ी |हर कदम पर समझा कर पढाई के साथ साथ मार्गदर्शन भी किया |
स्कूल के अध्यापकों से जो सब सीखने को मिला, एक सफल जीवन की नीव के लिए वोह अतुलनीय रहा, कॉलेज के प्राध्यापक तो बस उस नींव को मजबूत करते रहे जिस पर जीवन रूपी इमारत ख़ड़ी करने में आज सक्षम हुई हूँ |
कॉलेज की पढाई के बाद स्कूल चलाने में हर पग पर मेरा साथ दिया मेरे गुरु मेरे पिता जी ने, यहाँ माँ की भूमिका को नहीं भुलाया जा सकता जो परदे के पीछे होते हुए भी साथ साथ थीं |
शादी के चार दिन बाद ही क्योंकि भाटिया कॉलेज का ऑफिस संभाल लिया ,तो यहाँ पर मेरे गुरु की भूमिका में रहे मेरे पति श्री यशपाल भाटिया जी जिन्होंने मुझे सार्वजनिक संपर्कता में तत्पर किया |
इसके बाद आया कंप्यूटर का जमाना जिसमें मेरा पहला गुरु रहा मेरा बेटा हर्ष भाटिया , फिर आ गया फेसबुक जिसमें सबसे पहले मेरे गुरु रहे श्री परवीन कथूरिया जी ,उसके बाद जिमित शाह और अरुण शर्मा अनंत ने ब्लॉगिंग में बहुत कुछ सिखाया ,फिर डॉ रूपचन्द्र शास्त्री जी ,श्री अरुण निगम जी का अतुलनीय योगदान रहा ,अभी जैसे कि सीखना जारी है और कुछ और गुरु नाम इसमें शामिल हो जायेंगे | जैसे की सीखने की कोई उम्र नहीं होती इसी प्रकार जरुरी नहीं गुरु आप से बड़ा ही हो | मेरे जीवन में आने वाले हरेक गुरु का मैं तह दिल से सम्मान करती हूँ और उनकी ताउम्र ऋणी रहूंगी|
मेहनती गुरुओं के साथ साथ शिष्यों में भी एक अनुशासन की भावना ,सत्कार की भावना, सीखने की लगन तब हुआ करती थी ,गुरु भी अपना कर्तव्य समझ बिना किसी लालच के शिष्यों का मार्गदर्शन करते थे | आज के परिवेश में शिक्षा के मायने बदल चुके हैं साथ ही शिक्षकों की सोच भी जो अब निष्ठावान ,कर्तव्य परायण नहीं रहे ना ही उनको अपने शिष्यों से कोई लगाव रहा है |
इसका सबसे बड़ा कारण हमारा समाज ही है जो आधुनिकता की होड़ में पाछचत्य सभ्यता का अनुकरण कर रहे हैं पर अपनी निष्ठा ,नैतिक मूल्यों को भूलते जा रहे हैं |
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