शुक्रवार, 25 मार्च 2016

चौथा विश्व मैत्री सम्मलेन

दोस्तों चतुर्थ विश्व मैत्री सम्मलेन बीकानेर में 5 और 6 मार्च को होना तय हुआ था ,इसके लिए लगभग 2 महीने पहले सोशल मीडिया पर लिखित परिचर्चा मंगवाई गई थी ,जिसमे लगभग 350 लोगों ने अपनी प्रविष्टि भेजी थी उन्हीं में से 100 प्रतिभागी चुने गए थे परिचर्चा के आधार पर  जिसका विषय था 'विश्व मैत्री और भाईचारे में सोशल मीडिया की भूमिका और खट्टे मीठे अनुभव' .. जिनको बीकानेर जाना था ... मेरा यह पहला अवसर था दिल्ली से बाहर सम्मान समारोह के लिए जाने का ... इसलिए पूरी तरह से किशोर जी और शशि दी पर निर्भर थी ..मैंने उनको कह दिया था जैसे आप जाएँ जब आप जाएँ मुझे साथ ही जाना है इसलिए मुझे उनके साथ 3 मार्च को ही जाना था क्योंकि सारा संयोजन का भार उन्ही पर था ... तो वो घड़ी आ गई जब मैंने किशोर जी ,शशि दी ,किरण बाला जी, मीता राय के साथ अपना सफ़र शुरू किया दूसरे कम्पार्टमेंट में संजय भाई और बादल भाई भी हमारे साथ थे ... गाड़ी अपने सही समय पर थी 11.40 पर गाड़ी रवाना हो चुकी थी मेरा यह सफ़र गीतों भरा रहा क्योंकि मुझे नींद आई नहीं और पूरी रात गाने सुनने में निकल गई थी ... सुबह 7.30 बजे बीकानेर पहुँचते ही आदरणीय गोवर्धन चौमाल जी और राजाराम स्वर्णकार जी पहुँच गए थे अपनी टीम के साथ ...  उन्होंने हमारा ठहरने का प्रबंध होटल शिवा में किया था जो कुछ ही दूरी पर था

सोशल मीडिया यानि आभासी दुनिया किसी का कुछ पता नहीं कौन क्या है ? या यूँ कहें ब्लाइंड गेम जिसमे अच्छा बुरा होने की दोनों संभावनाएँ बनी रहती हैं ...  जो  आप सबकी संस्था ''हम सब साथ साथ '' द्वारा आयोजित किया गया प्रतिभा प्रदर्शन और सम्मान समारोह .....  अब तक के सोशल मीडिया के सफ़र में काफी खट्टे मीठे अनुभव थे लेकिन बीकानेर में सिर्फ मीठे ही मीठे अनुभव हुए ...
...  प्रत्यक्ष मिलन हो रहा था इस आभासी दुनिया से जुड़े लोगों का लेकिन बीकानेर विश्व मैत्री सम्मलेन में हमारे साथ सब अच्छा ही अच्छा हुआ और यह वहम जाता रहा कि यह एक आभासी दुनिया के लोगों का मिलन समारोह है .. बेमिसाल मेहमान नवाजी परोसी गई बेमिसाल खाने के साथ  ...

पहले दिन उद्घाटन के बाद,चित्र प्रदर्शनी और फिर दीप प्रज्वलन के बाद कार्यक्रम शुरू हुआ  .... परिचय सत्र में सबसे रूबरू होने का मौका मिला जिसमे नए पुराने काफी दोस्तों से मिलने और कुछ को और करीब से जानने का सुनहरा अवसर मिला ..परिचय सत्र के बाद परिचर्चा सत्र में मैत्री-भाईचारे के प्रचार-प्रसार में सोशल मीडिया की भूमिका पर कुछ प्रतिभागियों ने अपने अपने विचार रखे उसके बाद भोजन तैयार था ..  संयोजकों में जैसे किशोर जी शशि दी पर पूरी जिम्मेवारी थी वहीँ स्थानीय संयोजकों में आशा दी और गोवर्धन चौमाल जी ,राजाराम स्वर्णकार जी और पूरी की पूरी टीम जी जान से इस प्रोग्राम को सफल बनाने में लगी थी  ... आशा दी और गोवर्धन जी तो ऐसे तनमन धन से लगे थे जैसे बेटी की शादी करने जा रहे हों ..आशा दी सबको बार बार पूछ रही थी आपने खाना खाया ..
उसके बाद शुरू हुआ काव्यपाठ ... और फिर रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम जिसमे कुछ सथानीय कलाकारों ने और दूर दूर से आये प्रतिभागियों ने भाग लिया .. जो  लगभग रात 1.30  तक चला ...

दूसरे दिन सम्मेलन के विभिन्न सत्रों में , कन्या भ्रूण हत्या, लिव इन रिलेशनशिप पर परिचर्चा के अलावा कवि सम्मेलन,पुस्तकों का विमोचन और फिर प्रतिभागियों के सम्मान का सिलसिला शुरू हुआ जो शाम 5 बजे तक चला .. उसके बाद सब अपने अपने घूमने अनुसार निकलते गए .. .. कुछेक की वापिसी रात को थी कुछेक की अगले दिन की थी ... यानि 7 मार्च को ... 
राजस्थान के इस गंगा यमुनी तहजीब के शहर बीकानेर से हम लेकर आये प्यार का, अतिथ्यभाव का एक अनमोल खजाना जिसमें आदरणीय चौमाल जी ,आशा जी ,राजाराम स्वर्णकार जी अपने सब साथियों के साथ अग्रणी भूमिका में रहे ... जो एक धरोहर की तरह हमने सहेज लिया ... 

दूसरा खजाना मिला कुछ ख़ास दोस्तों का वैसे तो वहां बहुत सारे नए दोस्तों से मिले जिनमें मिले कुछ नन्हे दोस्त जिन्होंने अपनी अद्भुत प्रतिभा से सबका मन जीत लिया और फेसबुक पर हमारे सबसे छोटे दोस्त बने.. जिसमें अश्मिता गंगटोक [सिक्किम] से और वान्या द्वारका [दिल्ली] से आईं थी .. 
फेसबुक पर ही मेरे भाई, भारत चौधरी से मिलना हुआ पहली बार यहीं पर ...

तीसरा सबसे ऊपर रहा एक ऐसी शख्शियत से मिलना जिनके बारे में मैं कुछ जान ही नहीं सकती थी अगर मैं बीकानेर की सैर को निकल जाती या उस दिन शिवरात्रि के लिए मंदिर चली जाती ...इसीलिए नहीं घूम पाए हम वहां के जूनागढ़ का किला ,चूहों वाली माता का मंदिर ... और भी कई दर्शनीय स्थल.. हम मिलने गए किशोर राज गाँधी जी से ...जिनकी कर्मभूमि है एक शमशान घाट जिसको वहां पर कल्याण भूमि प्रन्यास के नाम से जाना जाता है...  जिनका दिल धडकता है हर उस शक्स के लिए जिसे अपनों की जरुरत होती है ... जब भी किसी लावारिस को जरुरत होती है बाप की ,भाई की वो एक पल भी नहीं गँवाते भागते हुए जाते हैं और उनका संस्कार करते हैं ... हम लेकर आये उनसे आशीर्वाद बहुत सारी पुस्तकों के साथ ... कुछ चित्र वहां के भी ... 
बढ़ते हैं दोस्तों यादों के कारवां के साथ कुछ चित्रों के संग .... इंतज़ार में ... फिर से मिलने को आप सब से कहीं ना कहीं किसी मोड़ पर ... राहे जिंदगी में ...
             
            लेखिका ......सरिता भाटिया 




 







 



 


गुरुवार, 17 मार्च 2016

अनमोल रिश्ता [ लघुकथा ]


आज अनु नवरात्रि की पूजा करने बैठी ही थी ..  उसने जैसे ही दिया जलाया उसकी आँखें नम हो आई और आँसू बह निकले ..
''अभी अभी तो सन्देश आया था उसे .. जानू  जल्दी करो नाश्ता करने के लिए आ जाओ देर हो रही है ऑफिस के लिए ...
हाँ अभी आई बस जोत जगा कर ... उसने भी सन्देश भेज दिया था
हाँ चलो ना ... उसने पूजा से उठते ही सन्देश भेजा ...
हाँ तो चलो ...
और दोनों नाश्ता करने लगते थे ''.......................

कैसा अद्भुत बंधन बन गया था दोनों में ... मीलों की दूरी थी दोनों में ...कभी मिले नहीं थे वो ... फिर भी इतनी नजदीकी का अहसास था दोनों में .. एक अद्भुत रूहानी रिश्ता ..
दोनों एक दूसरे की पल पल की चिंता करते थे बिना इसकी परवाह किये कि आखिर उनके बीच रिश्ता ही क्या था...
 ...रिश्ता ... एक ऐसा शब्द जिसके सामाजिक तौर पर बहुत मायने थे पर रूहानी तौर पर सिर्फ एक दूसरे से यह अटूट प्यार था ,चिंता थी एक दूसरे की ,संभल था एक दूसरे का ,एक आत्मविश्वास था सदा साथ चलने का सब कठिनाईयों का मिलकर सामना करते हुए ...
यह क्यों एक याद बनकर अनु की आँखों के रास्ते टपकने लगे थे जोत जलाते हुए ,,,,
यादें .. शायद हमेशा ही सुकून देती हैं कभी आँसू रूप में बहकर ... कभी जिंदगी में एक सबक देकर ...
अनु के पूजा के समय निकलते आँसू उसकी मन की व्यथा कह गए थे ... उसे याद आ रहा था कोई जिसे उसने पल पल अपने साथ पाया था हर ख़ुशी के गम के लम्हों में .. कोई ख़ास ,कोई अपना ... जब दूरी कभी मायने नहीं बनी थी उसके लिए .. बस ख्वाहिश थी उसे एक पल देख लेने की ...
इतने बरस ऐसे बीत गए थे साथ चलते चलते कि अब उसकी खबर न मिलना उसके लिए नाउम्मीदी का एक ऐसा साया लेकर आया था जो उसके भविष्य के आगे आ खड़ा हुआ था ...
उसे पल पल जरुरत थी उसकी हर फैसले में ... एक नैतिक सहारा था उसका जो छिन गया था ..
पता नही यह आदत बन गई थी उसकी या एक ऐसा भरोसा जो किसी रिश्ते की रस्मों में बंधे बिना प्रगाढ होता जा रहा था |
उसने उसे बहुत सन्देश भेजकर समझाने की कोशिश की थी कि जो भी दुःख आये हैं मिलकर बाँट लेंगे पर एक दूसरे का नैतिक सहारा बने रहेंगे ... ऐसे ही जिंदगी कट जाएगी मिलजुल कर .... दूर रहते हुए भी साथ साथ चलते हुए ...
लेकिन शायद नाकाम रही थी अनु अपने अथक प्रयासों में ...
शायद उसने खो दिया था एक हमसफ़र जिसके साथ रिश्ता नहीं बना पाई थी वो दुनिया की नजरों में ... पर तोड़ भी तो नहीं पाई थी वो उस रिश्ते को जिसका कोई नाम नहीं था पर फिर भी वो .."अनजाना बंधन" ..उसके लिए ''अनमोल रिश्ता '' बन गया था ... जिसमे अनु अपना वजूद खो चुकी थी ...
पर 'उसे' "कोई मिल गया " था ,इसलिए उसे अभी अनु की जरूरत नहीं थी ....
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लेखिका :... सरिता भाटिया ....