गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

मेरा श्राद्ध

मेरा श्राद्ध  ...
आजकल श्राद्ध चल रहे हैं ... श्राद्ध यानि श्रद्धा से पितरों को प्रसन्न करने का पर्व ...
ऐसा माना  जाता है की इन दिनों आपके पितर यानि आपके पूर्वज  जो आपसे बिछुड़ कर चले गए हैं ..आपके साथ आकर रहते हैं ..
पितर हमारे साथ हैं इन दिनों यह जानकर मेरा मन भी कुलाचें भरने लगा इससे अच्छा क्या मौका हो सकता है जनाब अपने पूर्वज भी यहाँ और बाकि सब वर्तमान रिश्तेदार दोस्त यार भी यहाँ ... तो मैंने भी सोचा मैं भी लगे हाथ अपना श्राद्ध कर ही डालूँ फिर मेरे बाद किसी को फुर्सत मिले ना मिले .. बस फिर क्या था ...मैंने कुछ फेसबुकिया और व्हात्सप्प दोस्तों को भी न्योता दे डाला जिनके बिना  ना सूरज निकलता था ना ही चाँद अपनी चाँदनी भेजता था हमें बिस्तर पर पहुंचकर ही दम लेते थे  ... आजकल इतनी व्यस्तता है जनाब देखते हुए भी नहीं देखने का रिवाज सा हो गया है ... हर कोई खुद को ही ढूंड रहा है तो हम कहाँ से मिलेंगे उनको... इसलिए  मैंने लिखा ... श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं तो यार मर तो हम कब के गए हैं आपके लिए ... आपके बिना तो क्यों ना आप भी मेरा श्राद्ध कर दो आज हटाओ मुझे अपनी दोस्त सूचि से और अपनी फ़ोन डायरी से और सच्चे मन से तर्पण कर डालो ... वो कहते हैं ना यार तो कमीने होते हैं स्वर्ग से भी आपकी टांग खींच कर ले आयेंगे ...
कुछ मंद मंद मुस्कुरा रहे थे
जैसे जैसे हम ऊपर जा रहे थे ...
कुछ हमेशा की तरह खामोश थे यह सोच कर इसकी तो रोज की नौटंकी है कौन इसके मुंह लगे ..
जैसे जालिमों की दिली मुराद पूरी हो गई ..लो खुद ही टपक ली नहीं तो हम बेरहम हो होकर तड़पाते ... फिर टपकती ..
सुना है बेटे के हाथों श्राद्ध हो तो मोक्ष मिलता है मैंने भी इस लालच में ..बेटे को भी फ़ोन कर डाला ..  आज श्राद्ध है तो किसी जरूरतमंद को कुछ दिला देना या खिला देना ..उसका जवाब आया मातेश्वरी मैं कहाँ ढूढूं जरुरतमंद  ...
मैंने कहा अपने पियोन को ही कुछ लेकर दे देना ...
बेटा बोला उसकी तनख्वाह मेरे से भी ज्यादा है वो मेरे से कुछ नहीं लेगा ..,.
इसलिए हमने भी यारों के बिना .. अपने पूर्वजों को हाजिर नाजिर जान अपने रिश्तेदारों के साथ श्राद्ध मना डाला ...
मैंने पूरी खीर बनाई .. थोडा प्रसाद मंदिर के लिए निकाला और फिर पूर्वजों को अपने बीच महसूस करते हुए मैंने रसोई संभाली और सबको खिलाना शुरू किया .. पहले डैडी को खिलाया फिर मेरे घर कुछ मजदूर काम कर रहे थे उनको परोसा .. फिर बाकी सब को खिला कर मैंने खाया ... उसमे वाकई एक अद्भुत तृप्ति सी मिली और जब तक सबको खिला नही लिया खुद खाने का मन सा ही नही हुआ .. कितना आनंद आया खुद का श्राद्ध खुद करके ...
आप भी करके देखिये पूर्वजों के साथ आपको भी कितना सुकून मिलेगा ... जीते जी पूर्वजों को भोग लगाइए जनाब ..आशीर्वाद भी बरसेंगे ... कल को फोटो उनकी कोई आशीर्वाद नहीं देने आने वाली .. नहीं तो फिर आने वाले श्राद्ध का यानि पितृपक्ष का करते रह जाइएगा इंतज़ार ...
जैसे मैं कर रही हूँ दोस्तों का रिश्तेदारों का ... मजाल है पूछ जाएँ कैसे रहा श्राद्ध ... कहीं ज्यादा चर्चा हो गया तो मोदी जी सेल्फी ही ना मांग लें पूर्वजों के साथ ...
अच्छा दोस्तों निकलती हूँ कहीं देर ना हो जाये ... मेरा मन गुनगुना रहा है पूर्वजों को साथ जानकर ..
मत जा रे ..मत जा ...
साँसें थमी हैं
कैसी कमी है ...


गुरुवार, 18 जून 2015

''एकला चलो रे ...!!! ''

'' एकला चलो रे...'' 
करीब चार बरस पहले जब शुरू में फेसबुक पर आई तो मकसद था अपने स्कूल के कॉलेज के दोस्तों को ढूँढना क्योंकि सुना था यह एक अथाह समुन्दर है दोस्तों का..... यहाँ हर प्रान्त हर वर्ग ,हर जात, हर भाषा, हर देश के लोग जुड़े हुए हैं और यहाँ किसी भी मीलों दूर बैठे व्यक्ति से झट से संपर्क कर सकते हैं तो सीधी सी बात थी अपना भी इसके प्रति मोह जागना स्वाभाविक ही था क्योंकि मेरे पंजाब से दिल्ली चले आने के बाद सबसे संपर्क समाप्त सा हो गया था ।
यहाँ हर कोई दोस्त ही कहलाता है चाहे भाई हो या भाभी बेटा हो या बेटी,मौसा मौसी चाचा चाची  अपना हो या पराया हर रिश्ता दोस्ती में बदल जाता है .....  उसमें से कुछ दोस्त आपको अपनेपन की उन ऊँचाइयों तक ले जाते हैं जो आपने अपने खून के रिश्तों में भी महसूस नहीं की होगी । मीलों दूर बैठे हुए भी हर सुख दुःख में आपके साथ खड़े ना होकर भी खड़े होते हैं आपकी केयर करते हैं हर पल ...
धीरे धीरे उनकी ऐसी आदत लगती है आपको कि उनके बिना आपका जीवन अधूरा सा लगता है अगर सही शब्दों में कहें तो आपको उनकी लत्त लग जाती है अब उनके बिना आपका हर फैसला अधूरा लगता है जिन्होंने  समय समय पर  उत्साह बढ़ा कर आपका हौंसला बढ़ाया हो ,उचित मार्गदर्शन किया हो या यूँ कहें की आपके हौंसलों की उड़ान उन्हीं से होने लगती है , आपके साथ बतियाने का थोड़ा सा समय वो निकाल ही लेते हैं यहाँ अपनेपन की जरुरत होती है वो पूरी निष्ठा से निभा जाते हैं ,..... सिवाए कुछ लोगों के जो फेसबुक पर दोस्ती का गलत इस्तेमाल करते हैं अपना परिचय भी छुपा कर रखते हैं ... वास्तव में इन लोगों से भी आपको आपके अपने दोस्त ही बचाते हैं ....
कुछ लोगों से आपकी नजदीकियाँ बढ़ती हैं तो वो रिश्तों में बदलने लगती हैं कोई भाई ,कोई बहन ,कोई जीजा, कोई देवर ,कोई बेटा कोई बेटी ... आदि आदि बन जाते हैं कुछ सच्चे दोस्त बन जिंदगी भर हर सुख दुःख में आपके साथ खड़े होने का दावा करते हैं आपसे घंटों बतियाते हैं आपके साथ सब कुछ साँझा करते हैं तब शायद उनकी मजबूरी होती है उनका अकेलापन जिसे वो आपके साथ बाँटना चाहते हैं या आपसे सच्ची हमदर्दी ... राम जाने !!
यह सच्ची निष्ठा निभा कितने पाते हैं यह तो समय ही बताता है ऐसे ही नही कहा गया समय बहुत बलवान है ... एक पल आपकी पूरी जिंदगी बदल देता है ... कोई आपसे यह कह कर दूर चला जाता है कि आप इतने अच्छे क्यों हो ? कोई यह कह कर कि आप को समय के साथ बदलना चाहिए आगे बढ़ना चाहिए किसी भी कीमत पर ... कोई कहता है उसके पास समय नहीं कहानियाँ कहने का जिसने  पहले हर  बात पूछने  बताने का ठेका लिया होता है आपकी हर पल केयर की होती है  .. यह सिर्फ वही कर सकते हैं जो दावा करते थे ना बदलने का पर बदल जाते हैं जो आपके हौंसलों की उड़ान थे कभी आज वोही आपके पर कुतर रहे हैं ...कंधे से कँधा मिला साथ खड़े थे कभी आज आपकी टाँग खींचने में लगे हैं ... कई कहते हैं मैं ऐसा नहीं मेरे कंधे बहुत मजबूत हैं हमेशा आपका सहारा बनेंगे .... किसी को लोगों की परवाह है तो किसी को अपनी , कभी भी किसी की भी अंतरात्मा मर सकती है ... इस इंटरनेट की दुनिया से जो सही में मोहजाल से कम नहीं आपका मोह भंग होते हुए भी मोह भंग नहीं हो पाता है । बिल्कुल इस मायावी दुनिया की तरह यहाँ ना चाहते हुए भी कई रिश्ते निभाने पड़ते हैं मायाजाल बुनना पड़ता है ... यहाँ हर कोई अकेला आता है और अकेला ही उसे जाना है भीड़ में भी वो खुद को अकेला ही पाता है  .... 
 रविन्द्र नाथ टैगोर की पँक्तियाँ याद आ रही हैं......"जोड़ी तोर दक शुने केऊ ना ऐसे तबे एकला चलो " [यदि आपकी बात का कोई उत्तर नहीं देता है, तब अपने ही तरीके से अकेले चलो".......'' एकला चलो रे ... ''
सुन के तेरी पुकार सँग चलने को तेरे कोई हो ना हो तैयार 
चल चला चल अकेले चल चला चल .....
जिन दोस्तों ने मेरी मुश्किल घड़ी में मेरा जितना भी जैसे भी साथ दिया उसके लिये तहदिल से आभारी हूँ और हमेशा आभारी रहूँगी । वो यह कभी ना सोचें कि अब मैंने उनका साथ छोड़ दिया क्योंकि उन्होंने मेरा साथ छोड़ दिया था किसी भी मजबूरीवश ... कुछ जो कह कर साथ छोड़ गए कुछ चुपचाप बिना कुछ कहे ही ... वो मुझे वैसे ही हमेशा अपने साथ खड़े पायेंगे जब भी आवाज लगायेंगे  नजरंदाज करते हुए उनके किसी भी व्यवहार को जो उन्होंने शायद किसी मजबूरीवश किया हो मेरे साथ ...
किसी ने सही कहा है ... 
मरने पर तो चार कंधे झट से मिल जाते हैं जीते जी एक के लिए तरस जाते हैं....  तो यारो किसी का कन्धा बन सको तो जरूर बनना ।किसी की ताकत बन सको तो जरूर बनना ..कमजोरी कभी मत बनना ... यह अन्दर तक घायल कर जाती है जिसकी मरहम उनके सिवा फिर कोई नहीं बन सकता ...  
मुझे अभी भी विश्वास है खुद पर ....
मैं इतनी भी बुरी नहीं हूँ ... इतनी भी कमजोर नहीं हूँ ... चल सकती हूँ अकेले ... बस आप लोगों के अपनेपन ने निकम्मा कर दिया वर्ना इन्सां तो हम भी काम के थे यारो .... जिंदगी का सफ़र तो अकेले तय कर लूँगी लेकिन शमशान तक अकेले ना जा सकूँगी ... अब नहीं तो तब चले आना यारो .... 

..................................   सरिता भाटिया 

बुधवार, 3 जून 2015

एक लोकार्पण यह भी ....


2 जून 2015 की शाम मेरे लिए अहम तो पहले से ही थी क्योंकि दिल्ली कोलाज ऑफ़ आर्ट की वार्षिक प्रदर्शनी होने जा रही थी ललित कला अकादिमी में और सभी स्टूडेंट्स का आर्ट वर्क इसमें लगने जा रहा था यानि आपकी पूरे वर्ष की मेहनत ... आपने क्या सीखा ,कैसा सीखा कहाँ किसमें कितने सुधार की जरूरत है ..वगेरह वगेरह ..
इसलिए इसकी तैयारी लगभग दो महीने पहले शुरू हो चुकी थी और दो दिन से सबके मन में एक ही सवाल था मुख्य अतिथि कौन होगा ?? जो शुभारम्भ करेगा हमारी सबकी प्रदर्शनी का .. ... शिक्षक भी इसका जवाब नहीं दे पा रहे थे .. कुछ कह रहे थे शायद अपने वर्तमान मुख्यमंत्री केजरीवाल जी आने वाले हैं ....
* शाम 5.30 बजे का समय था शुभारम्भ का ... सब स्टूडेंट्स और अतिथिगण पधार चुके थे और अपना अपना      स्थान ले चुके थे ...
* लगभग 6 बजे ' दिल्ली कोलाज ऑफ़ आर्ट ' के संस्थापक ' एवं प्रिंसिपल श्री अश्वनी कुमार पृथ्वीवासी ' जी ने    माइक अपने हाथ में लिया ....
* उन्होंने बताया कि कैटालाग में जो बाहर 25 लिखा है वो इसलिए है कि उनको 25 वर्ष हो गए हैं इस क्षेत्र से जुड़े    हुए तो यह रजत जयंती वर्ष है उनके कला प्रेम का ...और उस 25 में सब स्टूडेंट्स की तस्वीरें हैं ..
* कैटालाग  के सामने और पिछले पन्ने पर अंकित हैं सभी स्टूडेंट्स के, शिक्षकों के और अश्वनी सर के सभी          अजीज लोगों के नाम जो भी उनके जीवन में उनके कला क्षेत्र में उनके साथ रहे ....
* इसके बाद हर आमो ख़ास का स्वागत करते हुए उन्होंने सभी का धन्यवाद किया ...
* फिर बात आई कि मुख्य अतिथि कौन ?? आने वाले हैं .. तो सर ने कहा कोई भी मुख्य अतिथि नहीं आने वाला    है ... आप सभी लोग जो यहाँ उपस्थित हैं आप सभी मुख्य अतिथि हैं तो कोई भी आकर अतिथियों की कुर्सी        पर बैठ सकता है ...  '' पंच ऑफ़ द इवनिंग '' 
* सब एक दूसरे को देखने लगे कोई आगे जा ही नहीं रहा था ... मैं उठकर खड़ी हो गई और इंतज़ार करने लगी        कि कोई आये तो मैं भी जाऊँ ...सर ने दोबारा दोहराया पर कोई आगे नहीं बढ़ा .. फिर मैं सबसे पहले सर के          पास जाकर खड़ी हो गई .. सर ने और लोगों को भी कहा आने के लिए तो फिर और लोग निकल कर आये ...
* सबका परिचय करवाया गया और बैठने को कहा गया ... पुष्पगुच्छ से सबका स्वागत किया गया ... फिर          सबने मिलकर कैटालाग का लोकार्पण किया और कला प्रदर्शनी का शुभारम्भ ... 
* इस तरह से अश्वनी सर ने हमारी शाम को चार चाँद लगा दिए... 
* कुछ ने प्रदर्शनी देखने के बाद अल्पाहार लिया कुछ ने पहले पेट पूजा की और उसके बाद प्रदर्शनी देखी ....
* किसी का भी मन नहीं था वहां से आने का पर समय देखते हुए हमने तस्वीरों में कुछ यादें कैद की और घर की    और प्रस्थान किया...
* तस्वीरों के लिए ख़ास कर आभारी हूँ प्रदीप कुमार आर्यन जी [ 'जनता की खोज' मैगज़ीन के सह संपादक] एवं    उनके सुपुत्र विशाल का जिन्होंने ने मेरे अनमोल लम्हों को कैद किया .... 
   कुछ झलकियाँ आपके लिए भी...... 























वहां बहुत से बच्चों से इंटरव्यू लिया जा रहा था सब अपने अपने अनुभव बता रहे थे कि दिल्ली कोलाज ऑफ़ आर्ट से कैसे जुड़े और क्या पाया उन्होंने यहाँ आकर .. मैं भी अपने अनुभव बताना चाहती थी पर बता नहीं पाई पता नहीं क्यों ... ?? 
मैं जब से यहाँ आई मेरी छुपी इच्छा को निखार मिलने लगा पल पल मैं इसके अनुकूल ढलने लगी सर के और सभी शिक्षकों के अथक प्रयास का नतीजा आपके सामने है कि मैंने पहली सीढ़ी पर पाँव रख दिया है आगे प्रभु जैसा चाहे .. 
पहली सीढ़ी पर रखा है पाँव 
मिली है सबसे प्यार की छाँव 
इरादे फौलादी ,नेक हैं विचार 
पहुँचूँगी एक दिन मैं सच्ची ठाँव ... 

                                                       रिपोर्ट :---- सरिता भाटिया

शनिवार, 9 मई 2015

माँ

माँ में तेरी प्रार्थना ,माँ में समझ अजान 
माँ में बसता है खुदा, माँ में है भगवान ||
माँ में गीता है बसी ,माँ में बसा कुरान  
माँ में सारे धर्म हैं ,माँ में सब भगवान ||


माँ एक विशाल शब्द है जिसकी व्याख्या कर पाना मेरे लिए संभव तो नहीं पर एक कोशिश जरुर की है माँ शब्द को सम्मान देने की |
माँ .. जिसमें दुनिया के हर भाव का अर्थ समहित है ....
माँ आकाश की ऊँचाई है ,माँ समुद्र की गहराई है ...
माँ एक स्नेह्मई स्पर्श है ,
माँ उदारता है , माँ अनंत हर्ष है ...
माँ उंगली पकड़ कर सिखाती  गुरू है ...
माँ जीवन राह पर हाथ थामे चलती दोस्त है ..
माँ  भगवान का ही रूप है ,वह फ़रिश्ता है ...
माँ त्याग है ,माँ समर्पण है... 
माँ  प्यार है ,  माँ दुलार है ...
माँ के आँचल में दुनिया का हर सुकून है ...
माँ ममता भरा आशीर्वाद है ...
माँ  अहसास है ,माँ विश्वास है ...
नाजुक क्षणों में माँ एक सहारा है .... 
माँ प्रार्थना है ,माँ अजान है..
माँ गीता है ,माँ कुरान है ...
माँ सर्वगुण संपन्न भगवान का भेजा फ़रिश्ता है ,कुछ और दोहे मैंने माँ को समर्पित किये हैं 
माँ समझे तेरी ख़ुशी, माँ ही समझे पीर 
माँ के नैनों से बहे, केवल ममता नीर ||
माँ का हँसता चेहरा, ह्रदय भरे उल्लास 
माँ की ममता से सदा, बढ़ता है विश्वास ||

मैं एक बेटी हूँ तो अपने घर में सबको परोसने के बाद खाना खाते खाते ठंडा हो ही जाता है .. शादी के बाद अब जब भी मायके जाती हूँ एक बात जो हमेशा याद आती है .. माँ हमेशा गर्म गर्म खाना परोसती है जिसका स्वाद कभी नहीं भूलता ... 

फूली फूली रोटियाँ ,माँ की आयें याद 
नरम गर्म सी रोटियाँ मायके जाने बाद |.... सरिता भाटिया 

मुनव्वर राणा की माँ से ओतप्रोत लेखनी को कौन नहीं जानता , माँ के बारे लिखे एक एक शब्द से माँ के अहसासों की खुशबु आती है ,अहसासों को समेटे मुनव्वर जी के कुछ शेर .... 
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
बच्चों की गलती पर भी अपना गुस्सा माँ बच्चों पर न उतार कर खुद ही उस पीड़ा को जी लेती है  
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
जो माँ से दूर होते हैं उनको माँ के हाथों की खुशबु वाकई हर पकवान में आती है बशीर बद्र ने क्या खूब कहा है 
बेसन की सोंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका, बासन, चिमटा, फूंकनी जैसी माँ
माँ खुदा की रहमत है इसके बिना यह संसार असंभव सा लगता है .... 

लेखिका ..सरिता भाटिया 

गुरुवार, 22 जनवरी 2015

कन्यापूजन [लघुकथा]

सुमित्रा आंटी बाहर आवाजें लगा लगा कर कन्याओं को इकठ्ठा कर रही थी ,क्योंकि वो काफी सक्षम है और कन्यापूजन बहुत विधि विधान से करती हैं और कन्याओं को खूब दान दक्षिणा देती हैं ....
पड़ोसन आंटी बोली देखो कितना अच्छे से कन्यापूजन करती है सुमित्रा ,... इसे कहते हैं भक्ति ,पूजा ...
सुमित्रा आंटी के अंदर जाते ही  गली में औरतें कानाफूसी करने लगीं  ... तुम्हे पता है .... कन्यापूजन से एक दिन पहले सुमित्रा आंटी ने अपनी बहु को घर से निकाल दिया |
अच्छा... क्यों भला ? मैंने पूछ लिया
 उसने फिर से एक कन्या को जन्म दिया था ना इसलिए एक औरत बोली ....
यह सुनकर मैं सन्न खड़ी थी और सोचने लगी कि आखिर यह कैसा कन्यापूजन है ??