बुधवार, 26 जून 2013

देवभूमि के देवदूत और विनाशलीला के लुटेरे

उतराखंड पर जो कहर बरपा है उसकी दास्ताँ थमने का नाम नहीं ले रही हैं | 10 दिन बाद भी समझ नहीं आ रहा कोई कैसे अपनों तक पहुंचे कैसे उनकी तलाश करे ?कौन कब एक देवदूत बन उनकी सहायता को आ जाए और कौन रास्ते में ही सब लूट ले |
जैसे जैसे लोग अपनों तक पहुँच रहें हैं और अपनी आपबीती बयां कर रहे हैं सुनने वालों के रोंगटे खड़े हो रहे हैं वैसे तो आजकल मीडिया बहुत सक्षम है और परिजनों को खोजने में भी सबकी बहुत मदद कर रहा है | |
पर सरकारें हैं की अभी भी अपने वोट बैंकों में उलझी घूम रही हैं |
  देवभूमि के देवदूत :----देवदूत हमें आर्मी वाले तो नजर आ ही रहे हैं वोह किस तरह से सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तक बिना थके बिना रुके बिना खाए अपनी जान की परवाह किये बिना दूसरे लोगों की जान बचाने में लगे हैं पर जैसे कि दिल्ली के सकुशल वापिस लौटे लोगों ने आपबीती बताई उन लोगों को भी किसी देवदूत से कम नहीं कहा जा सकता जिन लोगों ने इनकी इस मुश्किल घडी में इतनी सहायता की 
जैसा की अशोक अग्रवाल जी बताते हैं की उनका 1000 लोगों का एक जत्था गंगोत्री पर था 9 तारीख से लेकर 15 तारीख तक वहां भागवत थी  
सुबह उठते ही सबको वहां से निकलना था पर कल किसने देखा था सबका सामान पैक पड़ा था पर निकलना ही नसीब नहीं हुआ ,पूरी रात उन्होंने एक पहाड़ी पर चढ़ कर गुजारी जो थोड़ी सुरक्षित कही जा रही थी  
जैसे ही नीचे उतरे एक गाँव में आकर रुकना पड़ा जहां के स्थानीय लोगों ने जैसे उनकी सहायता की वोह किसी देवदूत से कम नहीं कहे जा सकते अशोक जी के अनुसार सब गाँव वासिओं ने अपने घर से खाना बना बना कर सब रुके हुए लोगों को खिलाया खुद जमीं पर सोकर अपने बिस्तर  कपडे तक लोगो को दिए उन्हें सर्दी से बचाने के लिए ,अपने परिजनों से संपर्क करने के लिए उन्हें अपने फ़ोन सिम कार्ड तक दिए तो बताइए यह लोग किसी देवदूत से कम थे |
  विनाशलीला के लुटेरे :---इन्हीं के अनुसार कुछ लोग ऐसे भी मिले रस्ते में जब उनसे एक चपाती मांगी गई तो 500रुपए ,हजार रुपए तक दिए गए पर उन्होंने नहीं दी और कहा हम क्या खायेंगे हमारे पास खुद ही खाना नहीं है | उन्होंने बरसात का  तरपाल में इक्कठा हो गया पानी पीकर गुजारा किया | जिनके पास पैसे भी नहीं थे कहाँ से खरीदते इतना मंहगा पानी ,भूखे प्यासे ही लोग चलते रहे | 
        हद तो तब हो गई जब सुनसान रास्ता देख लोगों से पैसे सोना लूट लिया गया और कुछ लोग तो लाशों से गहने उतार कर उनके पैसे छीन कर ले गए और कुछ वहशी दरिन्धों ने असहाय माँ बहनों को भी नहीं बक्शा उनकी इज्ज़त तार तार कर कैसे जिन्दा हैं ऐसे लुटेरे खुद की इंसानियत को मार कर |अभी कुछ पकडे गए लोगों से लाखों रुपए मिल रहे हैं साधु के वेश में एक से 1 करोड़ रुपए मिले | कुछ वहशी दरिंदों को भी पकड़ कर पुलिस के हवाले किया गया है इनको बक्शा नहीं जाना चाहिए |
हम सबकी सलामती चाहते हैं और सकुशल वापिसी की कामना करते हैं 
ऐसा हृदयविदारक दिन कभी किसी की जिन्दगी में नहीं आए |
हमें समझना होगा इस आपदा को जो हम सब द्वारा लाई गई है कुदरत के रास्ते रोकने की कोशिश कब प्रलय बन लौट आये कोई नहीं जनता जैसा की विदित है की मन्दाकिनी नदी का रास्ता रोकने के यह भयानक परिणाम हमारे सामने हैं |

सुधर जाओ इंसानों मुश्किल बड़ी है| 
आपदा मुंह खोले सामने खड़ी है ||

गुरुवार, 20 जून 2013

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत

इससे पहली पोस्ट में कुछ दोस्त मेरी पोस्ट से आहत हुए हों तो क्षमाप्रार्थी हूँ ,परन्तु ऐसे भाव हरेक के मन में आये होंगे क्योंकि मेरी ईश्वर में परम आस्था है फिर भी मेरे मन में ऐसे सवाल आये |
          मैं मानती हूँ सब पर एक ही शक्ति काम करती है कोई उसे कृष्ण कहे, प्रभु कहे ,अल्लाह कहे ,ईसामसीह कहे, शिव कहे या राम कहे |भगवान सर्वशक्तिमान है, अदृश्य है, अरूप है |क्योंकि भगवान् कण कण में बसता है ,इसलिए मेरा मूर्ति पूजा में विश्वास न होते हुए भी मुझे हर मनुष्य में ,पाषाण में वोह नजर आता है | यहाँ तक मूर्ति पूजा का सवाल है उस सर्वशक्तिमान के सामने अपना दुःख सुनाने के लिए हम सब ने उसकी एक छवि मन में बसा ली है बस वोह ही उसकी मूर्त है |
        दूसरा इस बात को समझना भी जरुरी है ....
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥
भावार्थः जब जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म आगे बढ़ने लगता है, तब तब मैं स्वयं की सृष्टि करता हूं, अर्थात् जन्म लेता हूं । सज्जनों की रक्षा एवं दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनःस्थापना के लिए मैं विभिन्न युगों (कालों) मैं अवतरित होता हूं ।
              जब मनुष्यों के पाप इतने बढ़ जायेंगे तो सृष्टि का विनाश तो होगा ही तभी तो भगवान् स्वयं की सृष्टि करेंगे |
   ईश्वर के वास्तविक स्वरुप को कोई नहीं जानता | बस मेरा यह कहना है कि ईश्वर पर विश्वास हमें दुःख सहने की क्षमता प्रदान करता है और कठिन क्षणों में सांत्वना देता है | फिर भी हमें अंधविश्वासों में नहीं पड़ना चाहिए और आँखें बंद कर अनुसरण न करें ,उसके बारे में जितना जानेंगे उसे उतना ही मानेंगे | अपनी आस्था को कायम रखते हुए धर्म के उत्थान के लिए ही कार्य करें |

अपनी ही निकाली गंगा में जलमग्न हो गए शिव, क्यों ?

बचपन में स्वामी दयानंद की जीवनी में कई बार पढ़ा कि जब घर में एक दिन शिवरात्रि वाले दिन सब पंडित और घर के लोग व्रत रखे शिव की पूजा कर रहे थे ,तभी दयानन्द जी ने देखा सब सोने लगे और एक चूहा आया और शिवजी की प्रतिमा के आगे रखे प्रसाद को खाने लगा ,तभी उनको बोध हुआ कि यह भगवान् अगर सर्व शक्तिमान है तो इसने चूहे को क्यों नहीं हटाया ? तब बाल मन इन्हीं सवालों से परेशान रहा कि वोह शिव नहीं हो सकता जिसने चूहा नहीं हटाया और एक दिन सब घर वगेरह छोड़ दयानंद जी सच्चे शिव की तलाश में निकल पड़े |
            ऐसे ही अनेक सवाल हरेक के मन में कौंध उठे हैं जब गंगोत्री  केदारनाथ ,बद्रीनाथ ,रुद्रप्रयाग ,हरिद्वार में प्रलय मचा है पूरा उतराखंड त्राहि त्राहि कर उठा है 
  • क्या भगवान शिव ने मानव के प्राकृतिक अपव्यय को न सहते हुए रूद्र रूप धारण कर प्रलय मचा दिया है ?
  • क्या शिव वाकई सच्चा शिव है जो अपने ही सब धाम मिटते हुए चुपचाप देखता रहा और अपनी ही निकाली हुई गंगा में जलमग्न हो गया ?
  • चार धाम की यात्रा पर जाने वाले यात्री यानि शिव के पुजारी ही शिव के तांडव में लील लिए गए क्यों ?
  • अगर शिव है तो उससे ऊपर कोई और शक्ति विराजमान है जिसके आगे शिव की भी नहीं चली ,क्यों ?
  • क्या इतनी दूर की कठिन यात्रा कर हम भगवान् को पा सकते हैं,जिसकी हम मूर्ति पूजा या पाषाण पूजा में व्यस्त हैं ?
  • क्या मूर्ति पूजा उचित है ? 
ऐसे कई सवाल मन में उठने लगे हैं दोबारा से सब दृश्य आँखों के सामने आने लगे है | इसे क्या कहें प्राक्रतिक आपदा क्योंकि भगवान् हम से रूठ गए हैं या ग्लोबल वार्मिंग से दिन ब दिन बदतर होते मौसम के हालात जिनकी कोई भविष्यवाणी अब हमारे हाथ में नहीं रही |
               मैं ईश्वर को सर्वशक्तिमान मानते हुए इसे वैज्ञानिक कारणों से हुई उथल पुथल मानती हूँ जो प्रकृति का अपव्यय हो रहा है उसे अनदेखा किया जा रहा है आज सब हिल स्टेशन पर दूरस्थ इलाकों में भी हर वस्तु उपलब्ध कराई जा रही है यात्रिओं के लिए नए नए होटल बनाकर |इसकी मंजूरी सरकार क्यों दे रही है अपनी राजनितिक रोटिया सेंकने के लिए या पैसों के लिए |
            इन सब पर रोक लगाना जरुरी है नहीं तो वोह दिन दूर नहीं जब सूखे से निपटने के लिए भारत को तैयार रहना पड़ेगा | हमें ग्लोबल वार्मिंग पर रोक लगाने के ठोस उपाए ढूंडने होंगे | अपनी राय अवश्य दें |
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