बचपन में स्वामी दयानंद की जीवनी में कई बार पढ़ा कि जब घर में एक दिन शिवरात्रि वाले दिन सब पंडित और घर के लोग व्रत रखे शिव की पूजा कर रहे थे ,तभी दयानन्द जी ने देखा सब सोने लगे और एक चूहा आया और शिवजी की प्रतिमा के आगे रखे प्रसाद को खाने लगा ,तभी उनको बोध हुआ कि यह भगवान् अगर सर्व शक्तिमान है तो इसने चूहे को क्यों नहीं हटाया ? तब बाल मन इन्हीं सवालों से परेशान रहा कि वोह शिव नहीं हो सकता जिसने चूहा नहीं हटाया और एक दिन सब घर वगेरह छोड़ दयानंद जी सच्चे शिव की तलाश में निकल पड़े |
ऐसे ही अनेक सवाल हरेक के मन में कौंध उठे हैं जब गंगोत्री केदारनाथ ,बद्रीनाथ ,रुद्रप्रयाग ,हरिद्वार में प्रलय मचा है पूरा उतराखंड त्राहि त्राहि कर उठा है
- क्या भगवान शिव ने मानव के प्राकृतिक अपव्यय को न सहते हुए रूद्र रूप धारण कर प्रलय मचा दिया है ?
- क्या शिव वाकई सच्चा शिव है जो अपने ही सब धाम मिटते हुए चुपचाप देखता रहा और अपनी ही निकाली हुई गंगा में जलमग्न हो गया ?
- चार धाम की यात्रा पर जाने वाले यात्री यानि शिव के पुजारी ही शिव के तांडव में लील लिए गए क्यों ?
- अगर शिव है तो उससे ऊपर कोई और शक्ति विराजमान है जिसके आगे शिव की भी नहीं चली ,क्यों ?
- क्या इतनी दूर की कठिन यात्रा कर हम भगवान् को पा सकते हैं,जिसकी हम मूर्ति पूजा या पाषाण पूजा में व्यस्त हैं ?
- क्या मूर्ति पूजा उचित है ?
मैं ईश्वर को सर्वशक्तिमान मानते हुए इसे वैज्ञानिक कारणों से हुई उथल पुथल मानती हूँ जो प्रकृति का अपव्यय हो रहा है उसे अनदेखा किया जा रहा है आज सब हिल स्टेशन पर दूरस्थ इलाकों में भी हर वस्तु उपलब्ध कराई जा रही है यात्रिओं के लिए नए नए होटल बनाकर |इसकी मंजूरी सरकार क्यों दे रही है अपनी राजनितिक रोटिया सेंकने के लिए या पैसों के लिए |
इन सब पर रोक लगाना जरुरी है नहीं तो वोह दिन दूर नहीं जब सूखे से निपटने के लिए भारत को तैयार रहना पड़ेगा | हमें ग्लोबल वार्मिंग पर रोक लगाने के ठोस उपाए ढूंडने होंगे | अपनी राय अवश्य दें |
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