रविवार, 13 जुलाई 2014

अखंड भारत पत्रिका विमोचन

दिनांक : 12 जुलाई, 2014.
दिवस : शनिवार 
अखंड भारत .... स्वप्न से यथार्थ तक .... वीरांगना लक्ष्मीबाई विशेषांक लोकार्पण ... साहित्य गौरव .... जिसका बखूबी आयोजन किया गया भाई अरविन्द योगी द्वारा और श्री समोद सिंह चरौरा जी द्वारा इसका संयोजन , एन डी तिवारी भवन के चतुर्थ तल पर किया गया | 
समय रखा गया था सुबह 10 बजे का जबकि कार्यक्रम शुरू हुआ 11.15 बजे  तक | सभी मुख्य अतिथिओं का स्वागत किया गया पुष्पमालाएं भेंट कर के |
इस साहित्यक कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई अध्यक्षता कर रहे डॉ. कुँवर बेचैन जी एवं श्रीमती संतोष कुँवर जी ने जिन्होंने अंत तक बहुत ही सलीके से सारा कार्यक्रम निभाया | 
मुख्य अतिथि की भूमिका में रहे श्री लक्ष्मी शंकर वाजपई जी , उनकी धर्मपत्नी ममता किरण वाजपई जी ,डॉ. उर्मिल जी , श्रीमती शकुंतला जी ,महान व्यंगकार श्री सुभाष चंदर जी एवं आदेश श्रीवास्तव जी |
मंच संचालन में अरविन्द भाई का साथ दिया श्री समोद चरौरा जी ने बाकी का कार्यभार संभाला सुषमा भंडारी जी और छाया पटेल ने जिसने अपनी खुद की बनाई रानी लक्ष्मीबाई की पेंटिंग उपहार स्वरूप मुख्य अतिथिओं को भेंट की |

सबसे पहले अखंड भारत त्रेमासिक पत्रिका के द्वितीय अंक का विमोचन किया गया सभी अतिथिओं द्वारा |
उसके बाद डॉ. कुँवर बेचैन जी की अध्यक्षता में काव्य पथ शुरू हुआ जिसमे मुख्य रूप से पत्रिका में भागेदारी करने वाले सभी रचनाकारों को पूर्णतया इसका मौका दिया गया | जिसमें विशेष आकर्षण रहे पीयूष द्वेदी जी जिन्होंने पूर्ण विकलांग होते हुए भी जिस जज्बे से काव्यपाठ किया वो सराहनीय था |
उसके बाद लक्ष्मी शंकर वाजपई जी ने ,ममता जी ने, उर्मिल जी ने काव्य के रूप में अपने आशीर्वचन दिए |
सभी गणमान्य अतिथिओं का सत्कार किया गया एक सम्मान पत्र, एक स्मृति चिन्ह और एक पटका दे कर | सभी काव्यपाठ करने वाले को भी सम्मान पत्र और एक एक पत्रिका भेंट स्वरूप दी गई |
2 बजे तक सारा कार्यक्रम संपन्न हो चुका था उसके बाद अरविन्द जी ने भवन की कैंटीन में ही पेट पूजा का भी बढ़िया इंतजाम रखा था ,जिसमें पूड़ी आलू के साथ रायता रखा गया था जबकि गर्मी उस समय अपने चरम पर थी तो शीतल जल की उचित व्यवस्था के कारण थोड़ी कम हो रही थी | सबने भोजन का आनंद मिलकर लिया कुछ मीठी गुफ्तगू के साथ |
अतिथिओं को भेजने के बाद हम भी वहां से निकले क्योंकि दिन का समय था तो मेट्रो तक का ऑटो आराम से मिल गया |
एक कार्यक्रम में पहले भी इसी भवन में भाग ले चुकी हूँ इसलिए एक विशेष बात जब भी एन डी तिवारी भवन तक पहुँचने का पता दिया जाता है तो हमेशा लिखा जाता है दीन दयाल उपाध्याय मार्ग पर उर्दू भवन के सामने जिससे समस्या यह होती है कि उर्दू भवन अधिक प्रचलित होने के कारण ऑटो वाला आपको पहले उर्दू भवन ले जाता है दीन दयाल उपाध्याय मार्ग को भूल कर अब उसके सामने जब कुछ नहीं मिलता और वन वे होने के कारण आपको वो वहीँ उतार देता है तो आपको उर्दू भवन में से निकल कर उसके पीछे वाले रास्ते से सड़क पार करने के बाद कोई बैनर लगा नजर आता है तो आप भवन में प्रवेश कर जाते हैं |
दूसरी बड़ी बात यहाँ बाहर कहीं आपको भवन का नाम नजर नहीं आता है जो अंदर प्रवेश करने के बाद ही नजर आता है |
इसलिए आगे से संयोजक ध्यान दें कि उर्दू भवन के सामने ऐसा न लिखें और अगर भवन का रख रखाव करने वालों को कह कर इसका नाम बाहर कहीं लिखा जाये या एक बोर्ड लगा दिया जाये तो बहुत सुविधा हो जाएगी |
या जो लोग वहां कार्यक्रम का अपना बैनर लगाते हैं वो भी ऊपर भवन का नाम लिख सकते हैं |
कार्यक्रम की कुछ झलकियाँ आप सबके लिए सौजन्य राजीव तनेजा जी  ....










रिपोर्ट .... सरिता भाटिया 

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