शुभम दोस्तो
- आज फिर एक लाश के ऊपर नौकरियो की बौशार हुई है
- एक बेगुनाह की बेगुनाही साबित करने की कोशिश हुई उसकी मौत के बाद
- फिर से अपने पडोसी ने छुरा घोंपा है ,विश्वासघात किया है
- आज फिर से सरकारी तंत्र को होश आया है कुछ पल के लिए
- क्या सरकार इतनी निकम्मी है कि इसको नहीं नजर आया कि सरबजीत का परिवार कैसे गुजर कर रहा होगा 23 वर्ष तक क्यों नहीं उनको तभी नौकरी दी गई ताकि उनके जख्मों पर कुछ मरहम तो लगाया जा सकता ?
- आखिर इतने साधन मुहैया करवाने के बाद भी जैसा कि सरकार का कहना है क्यों इतनी बेरोजगारी है ?
- क्या एक नौकरी पाने के लिए किसी अपने का मरना जरुरी है ?
- कब तक चलेगी यह वोट की राजनीति ?
- अभी और कितने बलिदान होंगे इस सरकार को जगाने के लिए ?
- हमें एक घर और एक नौकरी पाने के लिए आखिर कब तक अपनी बेटी को निर्भया और बेटे को सरबजीत बनाना होगा ?
आओ स्वयं को इसका हिस्सा माने और अपनी पूरी कोशिश लगाएं इस सरकार की निद्रा भंग करने में
बहुत सही बात की आपने , लेकिन इस लीपा -पोती से घाव तो नहीं भरेंगे
जवाब देंहटाएंएक ज्वलंत मुद्दे पर रचना
जवाब देंहटाएंलेख में व्यक्त विचारों से पूर्णता सहमत है. कृपया टिप्पणी विकल्प से पुष्टिकरण हटाए.
जवाब देंहटाएंबेबसी का दर्द का आलम,,
जवाब देंहटाएंसार्थक और सटीक लिखा आपने
जवाब देंहटाएंबधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करें
http://jyoti-khare.blogspot.in
बिल्कुल सही कहा आपने ...
जवाब देंहटाएंसार्थकता लिये सशक्त प्रस्तुति ...
संवेदन हीन सरकार को इस से कोई मतलब नहीं ,उन्हें केवल कुर्सी से मतलब है.
जवाब देंहटाएंअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post'वनफूल'
हर तरफ बेबसी का दर्द का आलम,सार्थक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंhalate bebasi hai,ye khud me khudkashi hai,sundar rachna
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