'दानों में महादान कन्यादान' ऐसा हम सुनते ,कहते आये हैं लेकिन जिस दान का जिक्र मैं करने जा रही हूँ इसका महत्व अनुभव करने के बाद यह वाक्य गलत साबित होता नजर आया । एक अर्से से मुझे और डैडी को एक खास उत्सव का इंतजार था ,वो था "दधीचि देहदानियों का उत्सव" जिसका फॉर्म हमने काफी कोशिशों के बाद अगस्त,2016 में जमा कराया था । डैडी को और मुझे बहुत उत्सुकता थी इसमें जाने की जिसका निमंत्रण कुछ दिन पहले ही कुरियर से और व्हाट्सअप से आ चुका था । पश्चिमी दिल्ली के सहभागियों के लिए यह उत्सव आशीर्वाद बैंक्वेट में रखा गया था ।सुबह 9.20 से 10.20 तक का समय था रजिस्टेशन के लिए हम सुबह 9.50 पर पहुंच गए थे । गेट पर ही हाथ जोड़े हुए दो लोगों ने सह्रदय हमारा स्वागत किया और हमें उत्सव स्थान के बारे सूचना दी और बताया कि पहले पहली मंजिल पर नाश्ते के लिए जायें और फिर बेसमेंट में उत्सव का कार्यक्रम होगा ।
पहली मंजिल पर पहुँचते ही हमारा स्वागत पुष्पों से और चंदन तिलक लगाकर किया गया ,उसके बाद नाश्ता करते करते कई महानुभावों से मुलाकात हुई ,जिनमें से एक विशेष व्यक्ति का जिक्र यहां जरूरी है जिनकी मुझे बहुत समय से तलाश थी लेकिन कुछ कारणवश मैं उन तक पहुँच नहीं पाई ... दवाई की चलती फिरती दुकान जी हाँ आपने बिल्कुल ठीक सुना चलती फिरती दुकान यानि "मेडिसिन बाबा" जो स्वयं ठीक से चल भी नहीं सकते लेकिन गरीबों के लिए दवाईयां माँगने के लिए कहीं भी पहुँच जाते हैं ,जो बची खुची दवाईयां हम कूड़े में फैंक देते हैं अगर आप समय रहते उनको दान करना चाहें तो उनको कुरियर कर सकते हैं या फिर फोन कर सकते हैं और वो आपसे लेकर उनको अपने पास संग्रह कर के उन्हें छाँटते हैं और जरूरतमंदों तक पहुँचाते हैं .. ऐसी शख्शियत से मिलना सुखद रहा ।
अब उसी हॉल में बैठे संयोजक मंडल से हमने अपनी ' विल' ली और नीचे चले गए उत्सव स्थान पर ।यहां पर लगभग 225 लोग आए । जिनमें 163 ऐसे थे जिन्होंने हमारी तरह अंगदान की इच्छा जताई थी और 23 ऐसे लोगों के परिवार वाले थे जिनकी इच्छा उनके मरण उपरान्त पूर्ण हुई थी ,उनके परिवार वालों को बुलाकर सम्मानित किया गया जिन्होंने उनकी इच्छा को सम्मान दिया अंगदान में सहमति जताकर । सारे कार्यक्रम का सफलतापूर्वक संयोजन किया श्रीमती मीना ठाकुर जी ने ।
प्रेरणा एवं संकल्प :--
नोटो [NOTTO] के निदेशक डॉ बिमल भंडारी जी ने अपने व्याख्यान और कुछ चित्रों द्वारा सबको देह दान और अंगदान के लिये मार्गदर्शन किया कि कब कहाँ कैसे इसे किया जा सकता है । इसके बाद आर्मी मेडिकल साइंसेज के डीन जनरल एन सी अरोड़ा ने सबको इसके लिए प्रेरित किया और संकल्प करवाया नेत्र,अंग और देह दान के लिए । आचार्य वीरेंदर विक्रम जी ने अपने आशीर्वचनों से सबको इस नेक काम में साथ सहयोग करने के लिए आशीर्वाद दिया । दधीचि देह दान समिति के अध्यक्ष एडवोकेट आलोक कुमार जी ने जीवंत उदाहरण देकर पूरी सभा को प्रेरित किया और सबके परिवार वालों का इस साहसिक फैसले के लिए तालियों से स्वागत कर उन्हें सम्मानित किया।अंत मे राम धन जी पश्चिमी क्षेत्र के दधीचि देह दान समिति के संयोजक ने सबका आभार व्यक्त किया । बहुत सुखद अनुभव लिये प्रेरित होकर हम घर लौटे फिर किसी और को प्रेरित करने का निश्चय मन में लिये ।
कुछ दोहों रूपी भाव जोे इसी प्रेरणा से मन में आये :--
देह दान करना अगर, आओ दधीचि द्वार।
कर के मंगल काज यह,करो मनुज उद्धार।।
पूर्व जन्म के फल सभी, पाया मनुज शरीर।
दे शरीर का दान अब, हर लो जग की पीर।।
तेरा मेरा क्यों करे, कुछ ना जाता साथ।
कर्म चलेंगे साथ बस ,लिए हाथ मे हाथ।।
अगर देखना है जगत, मरने के भी बाद।
करो दान सरिता नयन, लोग करेंगे याद।।
रखते अच्छी सोच जो, होते शुद्ध विचार।
अंग दान देकर मनुज, कर लो कुछ उपकार।।
माटी का घोड़ा मनुज, माटी की है देह।
माटी में मिलना सभी, व्यर्थ देह से नेह।।
हमने दो संकल्प लिए आप भी अवश्य ये संकल्प लेकर जीवन को सफल करें
पहला संकल्प :- नेत्र ,अंग और देह दान का और सब अपने परायों को भी प्रेरित कीजिये इस नेक काम के लिये
दूसरा संकल्प :- अपने पैसों से नहीं तो अपनी बची दवाओं से किसी की सहायता करेंगे ।
तब आप भी कहेंगे
"अंग दान महा दान "
"बची दवाईयां दान में ,ना फैंको कूड़ेदान में "