दिनांक 28 जून,2014.
दिवस शनिवार
काफ़िला ..शब्दों का सुहाना सफ़र .. काव्यगोष्ठी का आयोजन मुकेश कुमार सिन्हा जी ,अंजू चौधरी जी एवं हिन्द युग्म प्रकाशन के कर्ता धर्ता शैलेष भारतवासी जी के अथक प्रयासों से सफलता पूर्वक हिंदी भवन में उसके तृतीय तल पर किया गया |
शाम 5.30 बजे का समय था कार्यक्रम शुरू होने का सबसे पहले जाते ही अल्पाहार समोसे रसगुल्ले ,चाय के साथ शुरू हुआ | इसके बाद मुख्य अतिथिओं के पहुँचने पर लगभग 6.15 बजे कार्यक्रम शुरू किया गया |
कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था सबके साथ बातचीत और सबका काव्यपाठ जो बहुत ही सफलतापूर्वक पूरा हुआ | हिन्द युग्म की ओर से काव्यगोष्ठी का यह पहला प्रयास था ....'' काफ़िला ...शब्दों का सुहाना सफ़र '' अपने नाम की तरह ही कार्यक्रम भी बहुत ही मनभावन रहा |
इस कार्यक्रम में उन सभी लेखकों को आमंत्रित किया गया था जिनकी भी संयुक्त काव्य संग्रह कस्तूरी ,पगडंडियाँ ,गुलमोहर ,तुहिन और गूंज में रचनाएँ थीं | तीन काव्य संग्रह कस्तूरी ,पगडंडियाँ और गुलमोहर प्रकाशित हो चुके हैं जबकि तुहिन और गूंज अभी आने बाकी हैं |
मुख्य रूप से मंच संभाला आदरणीय केदारनाथ जी ने , उनका साथ दिया भाई मुकेश सिन्हा जी ने एवं पवन अरोड़ा जी ने |
सबसे पहले दिल्ली के बाहर से आये कवियों को काव्यपाठ का सुअवसर दिया गया और समय की कोई पाबंधी नही रखी गई सबने दो दो तीन तीन रचनाएँ पढ़ डाली | अलग अलग विधा के सुंदर रूप सुनने को मिले ,समय जैसे पंख लगा उड़ने लगा |
जब 8.15 का समय हुआ तो मुख्य अतिथि लक्ष्मी शंकर वाजपई जी और गीता श्री जी को थोड़ी बेचैनी होने लगी क्योंकि 10 -12 लोगों का काव्य पाठ अभी बाकी था इसलिए आदरणीय वाजपई जी को काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया गया | उन्होंने कुछ दोहे और अपनी कविता पढ़ी | गीता श्री जी बिना कुछ बोले ही चली गई | उसके बाद आदरणीया सुमन केशरी जी ने अपनी एक कविता पढ़ी और सबके साथ बनी रहीं |
उसके बाद बाकी सबने अपनी रचनाएँ बारी बारी रखीं जिसमें लगभग 9.30 बजे का समय हो गया | फिर सभी को स्मृति चिन्ह से सम्मानित किया गया | क्योंकि मेरी कुछ रचनाएँ भी तुहिन काव्य संग्रह में आ रही हैं इसलिए मुझे भी यह सुअवसर प्राप्त हुआ |
इसके बाद बाहर निकलते ही गर्म गर्म मैक पफ्फ़ और बर्गर के साथ फ्रेसिका दी गई | जिसे खाते हुए सब विदा लेते रहे | समय हो गया 9.50 जब काफ़िले के आखिरी पड़ाव पर पहुंचे और सबने विदा ले ली |
एक सलाह आयोजकों को देना चाहूंगी वो भी मुफ्त में ...
काव्य पाठ में समय सीमा की थोड़ी सी बंदिश जरूरी है क्योंकि बाद में जिनका नंबर आता है एक तो उनको कोई सुनता नहीं है और दूसरा उनको अपनी रचनाएँ इतनी जल्दी जल्दी में पढनी पड़ती हैं जो प्रभावहीन रहती हैं |
आखिरी सुझाव यह है कि ऐसे सभी कार्यक्रम हिंदी भवन के आसपास होते हैं तो वहां से वापिसी के लिए कोई ऑटो सुविधा उपलब्ध नहीं रहती है इसलिए या तो कार्यक्रम समाप्त होने का इंतज़ार करना पड़ता है ताकि कोई आपको मेट्रो तक छोड़ दे या फिर ऐसे कार्यक्रम से गैरहाजिर रहना पड़ता है इसलिए यह आयोजन थोड़ा सा जल्दी रखे जाने चाहिए ताकि तय समय से फ्री होकर सब अपने गंतव्य तक पहुँच सकें |
इस कार्यक्रम की कुछ झलकियाँ ....
दिवस शनिवार
काफ़िला ..शब्दों का सुहाना सफ़र .. काव्यगोष्ठी का आयोजन मुकेश कुमार सिन्हा जी ,अंजू चौधरी जी एवं हिन्द युग्म प्रकाशन के कर्ता धर्ता शैलेष भारतवासी जी के अथक प्रयासों से सफलता पूर्वक हिंदी भवन में उसके तृतीय तल पर किया गया |
शाम 5.30 बजे का समय था कार्यक्रम शुरू होने का सबसे पहले जाते ही अल्पाहार समोसे रसगुल्ले ,चाय के साथ शुरू हुआ | इसके बाद मुख्य अतिथिओं के पहुँचने पर लगभग 6.15 बजे कार्यक्रम शुरू किया गया |
कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था सबके साथ बातचीत और सबका काव्यपाठ जो बहुत ही सफलतापूर्वक पूरा हुआ | हिन्द युग्म की ओर से काव्यगोष्ठी का यह पहला प्रयास था ....'' काफ़िला ...शब्दों का सुहाना सफ़र '' अपने नाम की तरह ही कार्यक्रम भी बहुत ही मनभावन रहा |
इस कार्यक्रम में उन सभी लेखकों को आमंत्रित किया गया था जिनकी भी संयुक्त काव्य संग्रह कस्तूरी ,पगडंडियाँ ,गुलमोहर ,तुहिन और गूंज में रचनाएँ थीं | तीन काव्य संग्रह कस्तूरी ,पगडंडियाँ और गुलमोहर प्रकाशित हो चुके हैं जबकि तुहिन और गूंज अभी आने बाकी हैं |
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रहे आदरणीय लक्ष्मी शंकर वाजपई जी ,आदरणीया सुमन केशरी जी और गीता श्री जी ,तालिओं की गूंज एवं फूलों के गुलदस्तों के साथ सभागार में उनका स्वागत किया गया | सुमन केशरी जी अंत समय तक सबके साथ बनी रहीं |
मुख्य रूप से मंच संभाला आदरणीय केदारनाथ जी ने , उनका साथ दिया भाई मुकेश सिन्हा जी ने एवं पवन अरोड़ा जी ने |
सबसे पहले दिल्ली के बाहर से आये कवियों को काव्यपाठ का सुअवसर दिया गया और समय की कोई पाबंधी नही रखी गई सबने दो दो तीन तीन रचनाएँ पढ़ डाली | अलग अलग विधा के सुंदर रूप सुनने को मिले ,समय जैसे पंख लगा उड़ने लगा |
जब 8.15 का समय हुआ तो मुख्य अतिथि लक्ष्मी शंकर वाजपई जी और गीता श्री जी को थोड़ी बेचैनी होने लगी क्योंकि 10 -12 लोगों का काव्य पाठ अभी बाकी था इसलिए आदरणीय वाजपई जी को काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया गया | उन्होंने कुछ दोहे और अपनी कविता पढ़ी | गीता श्री जी बिना कुछ बोले ही चली गई | उसके बाद आदरणीया सुमन केशरी जी ने अपनी एक कविता पढ़ी और सबके साथ बनी रहीं |
उसके बाद बाकी सबने अपनी रचनाएँ बारी बारी रखीं जिसमें लगभग 9.30 बजे का समय हो गया | फिर सभी को स्मृति चिन्ह से सम्मानित किया गया | क्योंकि मेरी कुछ रचनाएँ भी तुहिन काव्य संग्रह में आ रही हैं इसलिए मुझे भी यह सुअवसर प्राप्त हुआ |
इसके बाद बाहर निकलते ही गर्म गर्म मैक पफ्फ़ और बर्गर के साथ फ्रेसिका दी गई | जिसे खाते हुए सब विदा लेते रहे | समय हो गया 9.50 जब काफ़िले के आखिरी पड़ाव पर पहुंचे और सबने विदा ले ली |
एक सलाह आयोजकों को देना चाहूंगी वो भी मुफ्त में ...
काव्य पाठ में समय सीमा की थोड़ी सी बंदिश जरूरी है क्योंकि बाद में जिनका नंबर आता है एक तो उनको कोई सुनता नहीं है और दूसरा उनको अपनी रचनाएँ इतनी जल्दी जल्दी में पढनी पड़ती हैं जो प्रभावहीन रहती हैं |
आखिरी सुझाव यह है कि ऐसे सभी कार्यक्रम हिंदी भवन के आसपास होते हैं तो वहां से वापिसी के लिए कोई ऑटो सुविधा उपलब्ध नहीं रहती है इसलिए या तो कार्यक्रम समाप्त होने का इंतज़ार करना पड़ता है ताकि कोई आपको मेट्रो तक छोड़ दे या फिर ऐसे कार्यक्रम से गैरहाजिर रहना पड़ता है इसलिए यह आयोजन थोड़ा सा जल्दी रखे जाने चाहिए ताकि तय समय से फ्री होकर सब अपने गंतव्य तक पहुँच सकें |
इस कार्यक्रम की कुछ झलकियाँ ....
रिपोर्ट .... सरिता भाटिया