शनिवार, 9 जनवरी 2016

मन्नत [लघुकथा]

आज 12 मई को एकाएक याद हो आया वो बिन मौसम बरसात का दिन ... बरसात भी इतनी कि थमने का नाम ही नही ले रही थी ... मनीष ने आज के दिन अपने नए घर पर माता रानी का जागरण करवाने की सोची थी ... टेंट लगने के बाद सब इंतजार कर रहे थे आज के जागरण का ...क्योंकि एक भव्य जागरण की तैयारी की थी मनीष ने अपने बढ़े भाई यश के साथ मिलकर ... सबको न्योता दिया था ... इतनी बारिश हुई कि सिर्फ टेंट लगा रह गया था और कुछ भी लगा पाने की नौबत ही नही आई थी ... सारी दरियां गलीचे गीले हो गए थे ....टेंट पूरा टपक रहा था .... कहते हैं न जब तक भगवान का इशारा नहीं होता तब तक इंसान की क्या मजाल कि अपनी बातें मनवा ले ... आज फिर एक जागरण की तमन्ना अधूरी रह गई थी ....
मनीष की माँ ने यश के पैदा होने से पहले एक मन्नत मांगी थी ... माता रानी के जागरण की ... खुशियाँ दी भगवान् ने पर दुनियादारी में उलझ कर यह तमन्ना कहीं जिंदगी की दौड़ धूप में खो गई थी ... मनीष के पैदा होने पर फिर से मन्नत बलवती हो गई थी पर पूरी नहीं हो पाई थी ... दिन गुजरते रहे .... समय ने फिर करवट ली .. फिर यश के बेटों के जन्म पर तमन्ना हो आई थी जागरण करवाने की पर मनीष की माँ की यह इच्छा पूरी नहीं हो पाई थी ..भगवान ने दिल खोल कर दिया था पर एक मन्नत पूरी नहीं हो पाई थी .. आज मनीष के बेटे के जन्म पर माँ अपने घर के आगे माता रानी का जागरण करवाना चाहती थी पर मनीष ने इसे अपने नए घर पर ही रखा था कि घर तो एक ही है न माँ ... पर भगवान् को कुछ और ही मंजूर था इसलिए जागरण तो हुआ पर एक धर्मशाला में ... पनाह लेकर ... एक मध्य वर्गीय परिवार की यही कहानी रही है कुछ जरूरतें पूरी करने के लिए कुछ मन्नतें कुर्बान चढ़ती आई है ...इसलिए जितना जब हो सके करो पर कभी मन्नतें मत मांगो .. तब तो बिलकुल नहीं जब आप एक मध्य वर्गीय परिवार से सम्बंधित हैं ...  क्योंकि फिर मन्नतें ताउम्र आपका पीछा नहीं छोड़ेंगी और मनीष की माँ की तरह ही आपकी साँसों के साथ ही यह ख़त्म हो जायेंगी ...
                                                लेखिका ....  सरिता भाटिया 

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