बुधवार, 3 सितंबर 2014

हम साथ साथ [काव्यगोष्ठी]

दिवस  : मंगलवार 
दिनांक : 2 सितम्बर , 2014.
करीब 12 बजे जब फ़ोन की घंटी बजी तो एक मधुर सी आवाज ने पूछा ... पहचाना आपने ?
नहीं ,मैंने कहा ,जब आप फ़ोन करते नहीं तो कैसे पहचानेंगे |
तभी दूसरी तरफ से आवाज आई मैं किशोर बोल रहा हूँ किशोर श्रीवास्तव |
उन्होंने कहा जोधपुर से एक मित्र और उनकी पत्नी आये हैं और एक घंटे के लिए एक छोटी सी गोष्ठी रखी है हमारे निवास स्थान पर |
मैंने कहा ठीक है आप पता मैसज कर दीजिये |
फिर एक घंटे बाद फ़ोन आया वो लोग पटेल नगर होटल 'औरा दी एशिया' में रुके हैं इसलिए अब गोष्ठी का स्थान वहीँ रखा गया है |
इस तरह एक सुखद शाम कुछ मित्रों के साथ बिताने का सन्देश मिला |
                 6.30 बजे का समय तय हुआ था वहां पहुँचने का तो लगभग सभी वहां पहुँच गए थे | जोधपुर से जो दम्पति का सानिध्य हमें प्राप्त हुआ वो थे श्री अनिल अनवर जी  और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती मृदुला श्रीवास्तव जी |

सबका मूल परिचय किशोर जी ने कराया | जो मित्र वहां उनसे मिलने के लिए उपस्थित हुए वो थे किशोर श्रीवास्तव जी ,मेरी दी शशी श्रीवास्तव जी ,प्यारी प्रियंका और हमारी इकलौती श्रोता अन्तिका ,डॉ. अनवर साहिब ,संजय कश्यप जी और उनकी अर्धांगनी भावना जी एवं पंकज त्यागी जी |

सबके परिचय के बाद श्री अनिल अनवर जी ने अपना परिचय दिया कि उन्होंने साहित्य सेवा के लिए लगभग 21 साल पहले रिटायरमेंट ले ली थी और 20 वर्ष से एक मरू गुलशन नामक पत्रिका का संपादन कर रहे हैं |

श्रीमती मृदुला श्रीवास्तव जी एक स्कूल में प्राध्यापिका हैं और कोकिला सी मधुर आवाज की मालकिन |
गोष्ठी का शुभारम्भ किशोर जी के दिशा निर्देश में डॉ अनवर जी ने श्री अनिल अनवर जी को और प्रियंका ने श्रीमती मृदुला जी को पुष्प मालायें पहना कर उनका स्वागत किया |
इसके बाद डॉ. अनवर जी ने नारी पर ही एक रचना पढ़कर गोष्ठी की शुरुआत की |
फिर संजय कश्यप जी ने अपनी रचनाएँ स्त्री पर ही पढ़ीं ,उसके बाद मुझे मौका दिया गया दो तीन कुण्डलिया और एक गीत पढने का ,फिर शशी दी ने रचनाएँ  पढ़ीं |
इसके बाद प्रियंका ने अपनी रचनाओं का लोहा मनवाया क्योंकि उसकी सोच अपनी उम्र के पार कहीं बहुत दूर पहुँचती है जो अनायास ही दिल को छू जाती है उसकी रचनाओं में अपनी मिट्टी की सोंधी सोंधी खुशबू है |
सबने ही उसकी रचनाएँ सुनकर खूब तारीफ़ की |
उसके बाद पंकज जी ने अपनी रचनाएँ पढ़ी |

फिर चला चाय का दौर जिसमें बातचीत चलती रही और पंकज जी ने आखिर अनिल अनवर जी से पूछ ही लिया आपका नाम अनिल और साथ में अनवर ,तो उन्होंने बताया मेरे पड़ोस में नूर अहमद जी रहते जो मुझे प्यार से अनवर बुलाते थे और मैं हिंदी उर्दू दोनों शायरी लिखता हूँ इसलिए यह नाम लिया |

चाय के बाद भावना जी ने एक कहानी सुनाई ,उसके बाद किशोर जी ने अपनी एक दो रचनाएँ रखीं |
फिर अनिल अनवर जी ने टेलीफ़ोन वार्तालाप को 5 कुण्डलिया में बाँध सुनाया और एक खुबसूरत गजल कही |
अंत में मृदुला श्रीवास्तव जी ने अपनी मृदुल आवाज में माँ बोली में एक गीत रखा जिसे सुनकर मन तृप्त हो गया | इस शानदार साँझ का अंत हुआ कुछ यादों को कैमरे में कैद करके जिसकी झलकियाँ आप तक पहुँचाती हूँ इसके साथ ही ..... 






रिपोर्ट : सरिता भाटिया 

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